ब्रह्मा का मानस पुत्र कुश
- कुश ऋषि का मानस पुत्र कुशनाभ
- कुशनाभ का पुत्र गाधी
- गाधी का पुत्र कौशिक
- कौशिक जो महर्षि विश्वामित्र बन गए –
- कौशिक के पुत्र भीष्मक , यह विदर्भ के राजा थे
- विदर्भ की पुत्री रुक्मिणी
- रुक्मणी का विवाह श्रीकष्णा से हुआ
कुशनाभ, कुश के चार पुत्रों में से एक थे।
कुशनाभ ने महोदयपुर नामक नगर बसाया था और वहीं से शासन किया था।
- कुश के चार पुत्र थे: कुशाम्ब, कुशनाभ, असुरराज और वसु।
राजा भीष्मक के
पिता
का
नाम
राजा
कौशिक
था। वे
विदर्भ
के
राजा
थे
और
रुक्मिणी
के
पिता
थे. राजा
भीष्मक,
रुक्मिणी
के
पिता
थे,
और
रुक्मिणी
का
विवाह
भगवान
कृष्ण
से
हुआ
था. राजा
भीष्मक,
मगध
के
राजा
जरासंध
के
जागीरदार
थे
गाय के लोभ में
कैसे एक राजा
बन गया महान
ऋषि, पढ़ें पौराणिक
कथा
पौराणिक कथाओं में महर्षि विश्वामित्र का जिक्र मिलता है महर्षि विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं थे बल्कि राजा कौशिक थे नंदिनी गायक के चलते हुए एक राजा से महर्षि बन गए पौराणिक कथाओं में कई महान ऋषियों का उल्लेख मिलता है इनमें से एक है महर्षि विश्वामित्र कहते हैं कि विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं बल्कि क्षत्रिय थे उन्हें राजा कौशिक के नाम से जाना जाता था एक बार उनकी मुलाकात महर्षि वशिष्ठ से हुई और फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने कब तपशुरू कर दिया और वेद पुराण का ज्ञान लेकर महान ऋषि बढ़ गए ....
एक बार राजा कौशिक अपने विशाल सेवा के साथ जंगल की ओर निकले बीच में महर्षि वशिष्ठ का आश्रम पड़ा राजा कौशिक महर्षि वशिष्ठ से मिलने के लिए अपनी सेवा के साथ वही हार गए महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक और उनकी सेवा की खूब आओ भगत की सभी सैनिकों को अच्छे से अच्छे व्यंजन परोसे गए यह देखकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुएराजा कौशिक ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा कि एक ऋषि होते हुए आपने इतनी बड़ी सेवा के भजन का इंतजाम कैसे कर दिया तब महर्षि ने कहा कि उनके पास नंदिनी नाम की एक गए हैं जो स्वर्ग में रहने वाली कामधेनु गाय की पुत्री है नंदिनी गाय में ऐसी शक्ति है कि लाखों लोगों का एक साथ भरण पोषण किया जा सकता है इंद्रदेव ने नंदिनी गाय महर्षि वशिष्ठ को भेंट की थी
नंदिनी गाय की महिमा सुनकर राजा कौशिक के मन में लोग की भावना पैदा हो गई उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से नंदिनी गए उन्हें देने की बात कही इसके बदले में वे उन्हें मुंह मांगी कीमत देने के लिए भी तैयार हो गए महर्षि वशिष्ठ ने नम्रता से राजा के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया उन्होंने कहा कि वह नंदिनी गाय किसी को भी नहीं दे सकते हैं तब राजा कौशिक ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उन्हें हर हाल में नंदिनी गाय चाहिए सैनिकों ने महर्षि पर आक्रमण कर दिया इसके बाद नंदी ने गाय ने सभी सैनिकों को मौत कर दिया और राजा कौशिक को बंदी बनाकर महर्षि वशिष्ठ के सामने पेश कर दिया .
महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक के एक बेटे को छोड़कर सभी पुत्रों की मौत होने का श्राप दे दिया . राजा कौशिक जब अपने महल पहुंचे तो देखा कि उनके एक पुत्र को छोड़कर सभी की मौत हो चुकी थी इससे आहत होकर वे राजपथ अपने पुत्र को सौंप कर जंगल में चले गए उन्होंने कई सालों तक शिव की तपस्या की शिवाजी राजा की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा राजा शिव से कई सारे दिव्यास्त्र मांगे शिव ने उन्हें दिव्यास्त्र दे दिए इसके बाद राजा कौशिक दिव्यास्त्रों के साथ महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और उन पर आक्रमण कर दिया महर्षि वशिष्ठ के पास भी कई दिव्य शक्तियां थीं उन्होंने राजा कौशिक के सभी दिव्यास्त्रों को नष्ट कर दिया फिर वशिष्ठ ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया इससे पूरी धरती पर संकट का खतरा पैदा हो गया सभी देव महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और मानव जगत के हित में ब्रह्मास्त्र वापस लेने का आग्रह किया वशिष्ठ का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया दूसरी और कौशिक को ऐसा हुआ कि इतने सारे दिव्यास्त्र होने के बावजूद वह एक ऋषि से हार गए उन्हें पता चल गया कि कितना भी शक्तिशाली और प्रकार राजा क्यों ना हो सिद्धि से प्राप्त शक्ति के सामने वह कुछ भी नहीं है कौशिक फिर से जंगल की ओर चले गए और एकांत में तपस्या शुरू कर दी उनकी तपस्या से इंद्रदेव प्रकट हुए और उन्होंने कौशिक को ब्रह्मत्व प्रदान किया इस तरह राजा कौशिक ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र बन गए मगर विश्वामित्र के मन में अब महर्षि बनने की चाहती उन्होंने फिर से कठिन तक शुरू कर दिया फिर काम और क्रोध पर विजय पाकर उन्होंने महर्षि पद प्राप्त कर लिया
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