महाराजा मानसिंह के समय मारवाड राज्य के सैन्य अभियानो में सोढा करण सिंह प्रतापसिंहोत, सोढा उदयसिंह, सोढो नाथु सिंह, सोढो विजोजी, सोढा चुतर सिंह, सोढो सवाई सिंह, सोढो रतन सिंह, सोढो राजेन्द्र सिंह, सोढा विजय राज जी, सोढा महेसदास आदि प्रमुख सहयोगी रहे है ।
इस सेवाओं और उपकारों के बदलेमें मारवाड के शासकों ने सोढा राजपूतों को खारिया सोढा ( पाली) कलावास जोधपुर ,चूडियावास, नागौर, भूंका बाड़मेर, मूंगडा बाड़मेर आदि कई गांव सोढा राजपूतों को जागीर में दे दिये थे । जो आजादी तक इनके आधिपत्य में रहे ।।
सोढा राजपूतों ने जब- जब मारवाड रियासत द्वारा आह्वान किए जाने पर ,
बिना अपने प्राणों की परवाह किए मात्र आमंत्रण पर उपस्थित होकर अपना पूर्ण सहयोग ही नहीं दिया, बल्कि अपनें प्राणों तक का भी बलिदान दिया ।
सोढा सूरजमल, सोढा हरियोजी, सोढा गिरघर गोरधनोत,
सोढा नाथा दूदावत, सोढा जोगीदास लूणावत, सोढा किरत सिंह भोजराजोत,जैसे अनेक सोढा वीर योद्धाओ ने मारवाड राज्य के सैन्य अभियानों में भाग लेकर अपने प्राणों को न्योछावर किया है ।
आउवा की लड़ाई 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जो 18 सितंबर 1857 को आउवा (वर्तमान राजस्थान में) में लड़ी गई थी। यह लड़ाई ठाकुर कुशल सिंह चंपावत के नेतृत्व में लड़ी गई थी, जिन्होंने ब्रिटिश सेना और जोधपुर की शाही सेना के खिलाफ विद्रोह किया था।
1857 के विद्रोह के दौरान, आउवा का क्षेत्र विद्रोहियों का गढ़ बन गया था। एरिनपुरा छावनी के सैनिकों के विद्रोह करने के बाद, वे आउवा पहुंचे और ठाकुर कुशल सिंह ने उनका समर्थन किया। इससे नाराज होकर, ब्रिटिश सेना और जोधपुर के महाराजा ने आउवा पर हमला कर दिया।
18 सितंबर 1857 को, आउवा की लड़ाई हुई, जिसमें ठाकुर कुशल सिंह और उनके समर्थकों ने ब्रिटिश सेना और जोधपुर सेना को हराया। इस जीत ने विद्रोहियों को हौसला दिया और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
हालांकि, बाद में, अंग्रेजों ने आउवा पर फिर से हमला किया और 20 जनवरी 1858 को किले पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में ठाकुर कुशल सिंह को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन आउवा की लड़ाई ने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जोधपुर की तरफ से महाराणा तखत सिंह के नेतृत्व में विठोदा के युद्ध में चंपावत कुशाल सिंह की सेना से लड़ते हुए मोकाला गांव के ओनाड़ सिंह सोढा ने अपने प्राण दिए। आऊवा के कुशल सिंह जी के नेतृत्व में खारिया सोढा के सोडा राजपूत ने भी लड़ाई लड़ी जिसमें बहुत से विरमदे सोढा शहीद हुए । आऊवा की शुरुआती बढ़त के बाद तीसरी लड़ाई में आऊवा को हार का सामना करना पड़ा इसके कारण खारिया सोढा गांव को खालसे घोषित कर दिया गया ।
खालसा घोषित करने से पहले 1764 तक खारिया सोढा गांव की जागीरी रघुनाथ सिंह जी के पास 1764 तक रही उसके बाद में यह जागीर बरकत सिंह सोढा को पैठे हुई। यह वृत्तांत खारिया सोढा में उपलब्ध कुर्सी नामा के अनुसार सत्यापित होता है ।
खारिया सोढा खालसा घोषित होने के बाद यहां की जागीरी चारण जाति को दी गई । पीचीयाक बांध बनने के बाद सिरियारी बड़ी गांव डूबत क्षेत्र में आने लगे। बताया जाता है कि पिचियाक बांध के निर्माण के दौरान ही इसके डुबो क्षेत्र में आने वाले लोगों को सुरक्षा की दृष्टि से खारिया सोढा गांव में स्थानांतरित किया गया उसमें चारण भी शामिल थे । इन्हें चारण में से आगे जाकर गणेश दान जी चारण को खारिया सोडा की जागीर दी गई। गणेश दान चारण जी के वंश में रूपदान जी चारण हुए, रूप दान जी के 3 पुत्र अमर सिंह जी श्रवण सिंह जी रघु सिंह जी हुए , अमर सिंह जी के पुत्र प्रदीप सिंह भागीरथ सिंह हुए ।
बुजुर्ग एवं इतिहासकार बताते हैं कि गणेश दान जी चारण ने एक बार गांव खारिया सोढा का लाटा लिया है उसके बाद इंदिरा गांधी ने 1970 में जागीरदारी प्रथा खत्म कर दी इसलिए वहीं से यह ठाकुर प्रथा भी नहीं रही। कुर्सी नामा के अनुसार अंतिम ठाकुर खारिया सोढा के बरकत सिंह जी रहे जिन्हें यह 1764 के बाद रघुनाथ सिंह जी से मिली थी।
इंदिरा गांधी द्वारा जागीरदारी प्रथा ठाकुर प्रथा खत्म करने के कारण खारिया सोढा के अंतिम एवं एकमात्र चारण ठाकुर "गणेश दान जी चारण" रहे हैं।
यह संकलन कई स्रोत एवं माध्यम से इकट्ठा किया गया है इसमें खारिया सोढा के बुजुर्ग एवं उनके आपसी वार्ता, नेत सिंह सोडा कच्छ गुजरात वर्तमान निवासी मुंबई , तने सिंह सोडा काठा बाड़मेर , एवं खारिया सोढा का कुर्सी नामा एवं विकिपीडिया पर उपलब्ध सामग्री को साथ में लेकर किया गया है ।
इस संकलन में त्रुटि होने की पूर्ण संभावना है इसलिए कोई भी व्यक्ति इसमें त्रुटि को पाता है तो वह त्रुटि संशोधन के लिए हमें तुरंत अवगत कर सकता है । हम उस संशोधन के लिए हमेशा तैयार रहेंगे ।
हम यह दावा बिल्कुल नहीं करते हैं कि यह संकलन पूर्ण रूप से शुद्ध ही होगा और इसमें कोई त्रुटि नहीं होगी और हम यह भी नहीं कहते हैं कि इस पर सिर्फ हमारा बौद्धिक एवं मौलिक अधिकार है.
आभार संदर्भ ------
मारवाड़ के इतिहास में सोढा वंश का योगदान
नेत सिंह सोडा कच्छ गुजरात वर्तमान निवासी मुंबई ,
तने सिंह सोडा काठा बाड़मेर ,
एवं खारिया सोढा का कुर्सी नामा
एवं विकिपीडिया पर उपलब्ध सामग्री को साथ में लेकर किया गया है ।
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