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Saturday, September 28, 2019

मुहता नैणसी एवम् खारिया सोढ़ा ( 1719 तक )


मुहता नैणसी एवम् खारिया सोढ़ा (1715-1719)

मुहणोत नैंसी द्वारा लिखे ग्रंथ मारवाड़ परगना री विगत के प्रथम भाग में जोधपुर, सोजत एवम जैतारण परगना के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है इस ग्रंथ के पृष्ठ संख्या 383 से 462 के अंतर्गत  सोजत परगना का वर्णन आता है  

सोजत परगना के अंदर ही पृष्ठ संख्या 404 एवम 454 पर खारिया सोढा का नाम उल्लेखित है पृष्ठ 454 पर यह भी उल्लेखित है उस समय गांव में मुख्य रूप से जाट, राजपूत एवम बाणिये निवास करते थे  
सोजत परगना के अंतर्गत ही अलग से चारणों के गांव का भी उल्लेख किया गया है जिसमे बिजलियावास रेन्डरी सहित बहुत से गांवों का उल्लेख मिलता है परन्तु पृष्ठ 404 एवम 454 में यह उल्लेख नही मिलता है कि चारण जाति इस गांव की मूल जाती रही हो इससे यह अंदेशा लगता है कि चारण जाति खारिया सोढा में नैंसी मुणोत के ग्रंथ लिखने के बाद यानी सन 1727 के बाद ही इस गांव में आई है

नैनसी मुणोत के इस ग्रंथ से कई निष्कर्ष निकल सकते है जैसे-

1.      खारिया सोढा में निवासी सोढा राजपूत आजादी के बाद नही आये है बल्कि यह उनका पैतृक गांव है  

2.      अगर नैनसि मुणोत के ग्रंथ को ही आधार माने तो खारिया सोढा का इतिहास 800 साल पुराना जरूर है ।क्योंकि इन्होंने 1300 से 1727 तक का उल्लेख किया है उस काल को ही गणना का आधार माने तो अभी 21वी सदी चल रही है इएलिये न्यूनतम 800 साल पुराना गांव तो है ही  

3. सोढा (हम) खारिया सोढा के मूल निवासी है , पाकिस्तान से नही आये है  

Reference के लिए 4 पेज जोड़े गए हैं। ये उपलब्ध e-book के रूप में नैन्सी मुनोट की पुस्तक से हैं I

आप मुहता नैणसी की परिचय के बाद 4 पृष्ठों की तस्वीरें देख सकते हैं I


परिचय-मुहता नैणसी

(मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से)


मुहता नैणसी (1610–1670) महाराजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान थे वे भारत के उन क्षेत्रों का अध्यन करने के लिये प्रसिद्ध हैं जो वर्तमान में राजस्थान कहलाता है। 'मारवाड़ रा परगना री विगत' तथा 'नैणसी री ख्यात' उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।
मुहता नैणसी जोधपुर का निवासी था। यह जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह ( प्रथम ) का समकालीन था। इसका पिता जयमल भी राज्य में उच्च पदों पर कार्य कर चुका था। नैणसी ने जोधपुर राज्य के दीवान पद पर कार्य किया और अनेक युद्धों में भी भाग लिया, उसे इतिहास में बड़ी रूचि थी।
इसके द्वारा लिखी गई ख्यात 'नैणसी की ख्यात' के नाम से प्रसिद्ध है। कर्नल टाड के अलावा यहां के सभी इतिहासकारों ने इसका किसी किसी रूप में उपयोग किया है। ख्यात की उपयोगिता और इसका महत्व इस बात से ही प्रकट होता है कि गौरीशंकर ओझा ने इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि यदि यह ख्यात कर्नल टाड को उपलब्ध हो गई होती तो उसकाराजस्थान' कुछ और ही ढंग का होता। यह ग्रंथ रामनारायण दुगड़ द्वारा दो भागों में सम्पादित ( हिन्दी अनुवाद ) होकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा संवत् 1982 में प्रकाशित हुआ था। मूल राजस्थानी में यह ग्रंथ बदरीप्रसाद साकरिया द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से चार भागों में पूर्ण सन् 967 तक प्रकाशि हुआ। इस ख्यात में राजस्थान के प्रायः सभी रजवाड़ों के राजवंशों का इतिहास नैणसी ने लिखा है। इसमें सिसोदियो, राठौड़ों और भाटियों का इतिहास अधिक विस्तार के साथ लिखा गया है। पहले राजवंश की वंशावली देकर बाद में प्रत्येक शासक की उपलब्धियों कोबात' शीर्षक के अन्तर्गत लिया गया है जैसे — 'बात राव जोधा री' आदि। मुहणोत नैणसी सम्वत् 1727 तक जीवित था अत : ख्यात में 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक की घटनाओं का ही उल्लेख मिलता है। इसमें 13 वीं शताब्दी तक की वंशावली और संवत् इतने प्रामाणिक नहीं कहे जा सकते परन्तु उसके बाद के संवत् और घटनाएं विश्वसनीय मानी जाती हैं। नैणसी ने जिन व्यक्तियों के सहयोग से ख्यात की सामग्री का संकलन किया उनके नाम भी उसने यथास्थान दिये हैं। ख्यात की भाषा टकसाली राजस्थानी है, जिसमें अरबी-फारसी के कुछ शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। यह ग्रन्थ राजस्थान की राजपूत जाति, यहाँ की सामाजिक संरचना, आक्रांताओं से संघर्ष, जाति- प्रथा धार्मिक मान्यताएँ, भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक परिवेश संबंधी सूचनाओं से भी परिपूर्ण हैं।
नैणसी का दूसरा ग्रं मारवाड रा परगना री विगतहै, जिसमें महाराजा जसवन्त सिंह ( प्रथम ) के अधीन सात परगनों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह एक प्रकार से मारवाड़ का गजेटियर है। जिसमें प्रत्येक परगने का प्रारम्भ में इतिहास दिया गया है और फिर खालसा और जागीर के गांवों की अलग-अलग आमदनी आदि संक्षेप में अंकित कर परगने के अर्न्तगत आने वाले प्रत्येक गांव की भौगोलिक स्थिति के साथ उसकी रेखा, पांच वर्ष की आमदनी ओर गांव की उपज आदि विशिष्ट बातें भी अंकित हैं। इसमें जाति के अनुसार गांवों आबादी और पीने के पानी के साधनों का भी उल्लेख किया गया है। यह ग्रंथ मारवाड़ की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सांस्कृतिक और प्रशासन सम्बन्धी सामग्री का अत्यंत प्रामाणिक स्रोत है। इस ग्रंथ का सर्वप्रथम सम्पादन डा नारायण सिंह भाटी ने करके विस्तृत भूमिका सहित तीन भागों में ( सन् १९६८-७४ ) राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित करवाया।