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Tuesday, June 24, 2025

आउवा का विद्रोह सन 1857- आउवा के शहीद

Battle of Bithoda-Chelawas-Auwa (1857)

सन 1857- आउवा का विद्रोह सन 1857, जोधपुर के कुलीन कुशाल सिंह चंपावत ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ 1857 के भारतीय विद्रोह में शामिल हुए आयुवा के आसपास सोजत सिटी, पाली, खारिया सोढा, एरिनपुरा के लगभग 5000 से 6000 राजपूत उनके साथ शामिल हुए. कुशाल सिंह जी ने मारवाड़ (जोधपुर) के महाराजा तख्त सिंह जी की सेना से लड़ाई लड़ी ।

आऊवा के निकट विठोदा के पास एरिनपूरा छावनी के क्रांतिकारी और जोधपुर की सेना के बीच में 8 से 9 सितंबर 1857 को आमने-सामने युद्ध हुआ। हालांकि अधिकांश राठौर राजपूत ने और  आसपास के राजपूत ने और जोधपुर रियासत के अंदर आने वाले कई क्षेत्रों के राजपूत ने इस युद्ध में विदेशियों के लिए अपने ही क्षेत्र के साथी राजपूत के खिलाफ लड़ने से और उन्हें मरने से इनकार कर दिया इस प्रकार कुशाल सिंह जी ने जोधपुर के तगत सिंह जी द्वारा उठाए गए स्थानीय सैनिकों की एक सेना को हरा दिया ।

चेलवास की लड़ाई (1857-1858) में

कुशाल सिंह जी ने कैप्टन मेसन की हत्या कर दी और उसका अपमान करने के लिए उसका सिर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दिया .  इसके बाद उन्होंने ब्रिगेडियर लॉरेंस के नेतृत्व वाले 2000 पुरुषों की ब्रिटिश सेना को हराया। स्वतंत्रता सेनानियों ने जोधपुर के सेनापति राजमल लोढ़ा किलेदार ओनाड़ सिंह पवार और उनके सैनिकों को युद्ध में मार गिराया ।

किलेदार ओनर सिंह पवार (मेंफाबत) ठिकाना मोकलपुर (मोकला) तहसील मेड़ता जिला नागौर के रहने वाले थे। यह जोधपुर के महाराजा तकत सिंह जी के सन 1843 से 1857 तक किलेदार (सेनापति) थे जो स्वतंत्रता सेनानियों का मुकाबला करते हुए मारवाड़ जंक्शन के बिठोड़ा में 8 सितंबर 1857 को शहीद हुए।  मोकलपुर तालाब के किनारे किलेदार ओनाड सिंह पवार उनके पुत्र किलेदार देवी सिंह जी पवार एवं उनके पौत्र  के लाल सिंह (स्वर्गीय) जी पवार की छतरियां बनी हुई है।

इस 2 दिन की लड़ाई के बाद करनल होम्स के नेतृत्व में 30000 लोगों की सेना ने आऊंवा की घेराबंदी की और कुशाल सिंह जी को आउवा में अपने किले में वापस जाने के लिए मजबूर किया। 20 जनवरी 1858 को लड़ी गई इस लड़ाई में ठाकुर कुशाल सिंह जी की सेना पराजित हो गई  लेकिन इतिहास में इस ठिकाने का नाम अमर कर दिया ।

करनल होम्स ने 30000 सैनिकों के साथ 6 महीने तक आऊवा की घेराबंदी की । अब इस लड़ाई में कुशाल सिंह की सेना कमजोर पड़ने लगी । भविष्य की लड़ाई, नेतृत्व और स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला को जीवित रखने के लिए सैनिकों ने कुशाल सिंह जो को किले से बाहर निकाल दिया और मेवाड़ के रास्ते सलूंबर भेज दिया । सलूंबर में रावत केसरी सिंह के यहां शरण ली । सलूंबर के बाद कुशाल सिंह जी कोठारिया चले गए । अंग्रेजों ने ये किलेबंदी 1864 में कुशाल सिंह जी की मृत्यु तक रखी थी ।


नेतृत्व कौशल के धनी आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत की अगुवाई में मातृभूमि के रक्षक ठाकुर शिव सिंह आसौंप, ठाकुर बिशन सिंह गुलर, ठाकुर अजीत सिंह आलनियावास, ठाकुर पृथ्वी सिंह लांबिया, कोठारिया, रूपनगर, लसानी ,आसींद , पाली , खारिया सोढा, बांका, भीमालिया, बगड़ी के  शासको एवं आम राजपूतों ने इस लड़ाई में हिस्सा लिया ।लगभग 6000 सैनिक और ग्रामवासी ने आयुवा की तरफ से भाग लिया । इस युद्ध में सैकड़ों स्वतंत्रा सेनानी वीरगति को प्राप्त हुए ।

24 जनवरी 1858 को ही ब्रिटिश सेना ने 120 स्वतंत्रा सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया । इनमें से 24 शूरवीरों को ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने का अपराधी मानते हुए उन्हें अलग से चिन्हित किया , इनका कोर्ट मार्शल किया गया, मुकदमा चलाया गयाउर 25 जनवरी को अदालती फैसला सुनाकर उन्हें मृत्युदंड देने की घोषणा की । मातृभूमि के इन वीर सपूतों के हाथ पांव बांधकर , पंक्ति में खड़ा करके गोलियों से उनके सीने छलनी कर दिए गए । वे 24 स्वतंत्रा सेनानी आऊवा के स्वतंत्रा समर में शहीद होकर अमर हो गए ।

आउवा के युद्ध में शहीद हुए सभी सैनिकों की सूची कभी सार्वजनिक नहीं की गई । परन्तु इस लड़ाई में सहयोग देने वाले कई गांवों को बाद में खालसे घोषित कर दिया गया । किंवदंती के अनुसार इस लड़ाई के बाद ही खारिया सोढा गांव को भी खालसे घोषित करके वहां की जागीर चारण को दे दी गई । 

आउवा के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विस्तृत सूची जोधपुर संग्रहालय में उपलब्ध होने की संभावना है । यह जानकारी 1857 के स्वतंत्रा संग्राम से संबंधित है, और संग्रहालय में युद्ध के शहीदों के नाम और विवरण हो सकता है । परन्तु इस बात की भी प्रबल संभावना है उस संग्रहालय में में सिर्फ उन शहीदों के ही नाम हो जो जोधपुर की तरफ से आउवा के खिलाफ लड़े थे । आउवा की तरफ से लड़े उनकी सूची इनके पास नहीं हो । इसलिए फिर इसकी विस्तृत जानकारी सिर्फ आउवा के ही किन्हीं दस्तावेजों में मिल सकती है । जोधपुर की तरफ से उस समय महाराजा तख्त सिंह जी सिंहासन पर थे । इसलिए विस्तृत जानकारी के लिए उस समय के दस्तावेजों को सज्जनता से जांचना होगा या ऐसी कोई वेबसाइट , ई बुक आती है तो देखना होगा ।


संदर्भ आभार

स्वतंत्र संग्राम पनोरमा आउवा पाली

तने सिंह सोढा काठा 

नेत सिंह सोढा कच्छ

कुर्सीनामा खारिया सोढा

राजपूताना विरासत एवं संस्कृति FB

राजपूत क्लब FB 

राजपूत योद्धा राव प्रताप सिंह खींची चौहान FB 













Sunday, June 22, 2025

मारवाड़ के इतिहास में सोढा वंश का योगदान- आउवा की लड़ाई 1857

 

महाराजा मानसिंह के समय मारवाड राज्य के सैन्य अभियानो में सोढा करण सिंह प्रतापसिंहोत, सोढा उदयसिंहसोढो  नाथु सिंहसोढो विजोजी, सोढा  चुतर सिंह, सोढो सवाई सिंह, सोढो रतन सिंहसोढो राजेन्द्र सिंह, सोढा विजय राज जी, सोढा महेसदास आदि प्रमुख सहयोगी रहे है

इस सेवाओं और उपकारों के बदलेमें मारवाड के शासकों ने सोढा राजपूतों को खारिया सोढा ( पाली) कलावास जोधपुर ,चूडियावास, नागौर, भूंका बाड़मेर, मूंगडा बाड़मेर आदि कई गांव सोढा राजपूतों को जागीर में दे दिये थे जो आजादी तक इनके आधिपत्य में रहे ।।

सोढा राजपूतों ने जब- जब मारवाड रियासत द्वारा आह्वान किए जाने पर ,

बिना अपने प्राणों की परवाह किए मात्र आमंत्रण पर उपस्थित होकर अपना पूर्ण सहयोग ही नहीं दिया, बल्कि अपनें प्राणों तक का भी बलिदान दिया

सोढा सूरजमलसोढा हरियोजीसोढा गिरघर गोरधनोत

सोढा नाथा दूदावत, सोढा जोगीदास लूणावत, सोढा किरत सिंह भोजराजोत,जैसे अनेक सोढा वीर योद्धाओ ने मारवाड राज्य के सैन्य अभियानों में भाग लेकर अपने प्राणों को न्योछावर किया है

 

आउवा की लड़ाई 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जो 18 सितंबर 1857 को आउवा (वर्तमान राजस्थान में) में लड़ी गई थी। यह लड़ाई ठाकुर कुशल सिंह चंपावत के नेतृत्व में लड़ी गई थी, जिन्होंने ब्रिटिश सेना और जोधपुर की शाही सेना के खिलाफ विद्रोह किया था। 

1857 के विद्रोह के दौरान, आउवा का क्षेत्र विद्रोहियों का गढ़ बन गया था। एरिनपुरा छावनी के सैनिकों के विद्रोह करने के बाद, वे आउवा पहुंचे और ठाकुर कुशल सिंह ने उनका समर्थन किया। इससे नाराज होकर, ब्रिटिश सेना और जोधपुर के महाराजा ने आउवा पर हमला कर दिया। 

18 सितंबर 1857 को, आउवा की लड़ाई हुई, जिसमें ठाकुर कुशल सिंह और उनके समर्थकों ने ब्रिटिश सेना और जोधपुर सेना को हराया। इस जीत ने विद्रोहियों को हौसला दिया और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। 

हालांकि, बाद में, अंग्रेजों ने आउवा पर फिर से हमला किया और 20 जनवरी 1858 को किले पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में ठाकुर कुशल सिंह को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन आउवा की लड़ाई ने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जोधपुर की तरफ से महाराणा तखत सिंह के नेतृत्व में विठोदा के युद्ध में चंपावत कुशाल सिंह की सेना से लड़ते हुए मोकाला गांव के ओनाड़ सिंह सोढा ने अपने प्राण दिए। आऊवा के कुशल सिंह जी के नेतृत्व में खारिया सोढा के सोडा राजपूत ने भी लड़ाई लड़ी जिसमें बहुत से विरमदे सोढा शहीद हुए आऊवा की शुरुआती बढ़त के बाद तीसरी लड़ाई में आऊवा को हार का सामना करना पड़ा इसके कारण खारिया सोढा गांव को खालसे घोषित कर दिया गया

खालसा घोषित करने से पहले 1764 तक खारिया सोढा गांव की जागीरी रघुनाथ सिंह जी के पास 1764 तक रही उसके बाद में यह जागीर बरकत सिंह सोढा को पैठे हुई। यह वृत्तांत खारिया सोढा में उपलब्ध कुर्सी नामा के अनुसार सत्यापित होता है

खारिया सोढा खालसा घोषित होने के बाद यहां की जागीरी चारण जाति को दी गई पीचीयाक बांध बनने के बाद सिरियारी बड़ी गांव डूबत क्षेत्र में आने लगे। बताया जाता है कि पिचियाक बांध के निर्माण के दौरान ही इसके डुबो क्षेत्र में आने वाले लोगों को सुरक्षा की दृष्टि से खारिया सोढा गांव में स्थानांतरित किया गया उसमें चारण भी शामिल थे इन्हें चारण में से आगे जाकर गणेश दान जी चारण को खारिया सोडा की जागीर दी गई। गणेश दान चारण जी के वंश में रूपदान जी चारण हुए, रूप दान जी के 3 पुत्र  अमर सिंह जी श्रवण सिंह जी रघु सिंह जी हुए , अमर सिंह जी के पुत्र प्रदीप सिंह भागीरथ सिंह हुए

बुजुर्ग एवं इतिहासकार बताते हैं कि गणेश दान जी चारण ने एक बार गांव खारिया सोढा का लाटा लिया है उसके बाद इंदिरा गांधी ने 1970 में जागीरदारी प्रथा खत्म कर दी इसलिए वहीं से यह ठाकुर प्रथा भी नहीं रही। कुर्सी नामा के अनुसार अंतिम ठाकुर खारिया सोढा के बरकत सिंह जी रहे जिन्हें यह 1764 के बाद रघुनाथ सिंह जी से मिली थी। 

इंदिरा गांधी द्वारा जागीरदारी प्रथा ठाकुर प्रथा खत्म करने के कारण खारिया सोढा के अंतिम एवं एकमात्र चारण ठाकुर "गणेश दान जी चारण" रहे हैं।

यह संकलन कई स्रोत एवं माध्यम से इकट्ठा किया गया है इसमें खारिया सोढा के बुजुर्ग एवं उनके आपसी वार्ता, नेत सिंह सोडा कच्छ गुजरात वर्तमान निवासी मुंबई , तने सिंह सोडा काठा  बाड़मेर , एवं खारिया सोढा का कुर्सी नामा एवं विकिपीडिया पर उपलब्ध सामग्री को साथ में लेकर किया गया है

इस संकलन में त्रुटि होने की पूर्ण संभावना है इसलिए कोई भी व्यक्ति इसमें त्रुटि को पाता है तो वह त्रुटि संशोधन के लिए हमें तुरंत अवगत कर सकता है हम उस संशोधन के लिए हमेशा तैयार रहेंगे  

हम यह दावा बिल्कुल नहीं करते हैं कि यह संकलन पूर्ण रूप से शुद्ध ही होगा और इसमें कोई त्रुटि नहीं होगी और हम यह भी नहीं कहते हैं कि इस पर सिर्फ हमारा बौद्धिक एवं मौलिक अधिकार है.

 

आभार संदर्भ ------

मारवाड़ के इतिहास में सोढा वंश का योगदान

नेत सिंह सोडा कच्छ गुजरात वर्तमान निवासी मुंबई ,

तने सिंह सोडा काठा  बाड़मेर ,

एवं खारिया सोढा का कुर्सी नामा

एवं विकिपीडिया पर उपलब्ध सामग्री को साथ में लेकर किया गया है