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Wednesday, February 27, 2019

सोढा और बाड़मेर ( शिव )


सोढा (परमारों का इतिहास )

बाड़मेर जो राजस्थान में हे, नो कोटि मारवाड़ पति धरणीवराह के वंसज बाहड़राव ने बाहड़मेर (बाड़मेर) बसाया उनके पुत्र चाहडराव ने शिव को ,  शिव के मांन सरोवर तालाब बहूत ही रमणीय स्थान था वहा स्वर्ग से अप्सराये आती थी , राजा चाहड़ को किसी ने बताया होगा तो उत्सुकता वस वहा छुपके पहरा स्टार्ट हुआ , पूर्णिमा की रात गहराई और अप्सराये उतरी और राजा ने देखा अपनी आँखों से और ध्यान से जहा कपड़े रखे थे वो झटाक से प्राप्त कर लिए बाकि तो सब रूप बदल के उड़ गई एक अप्सरा प्रभावती के कपड़े हाथ आये और वो विनती करने लगी राजा ने शादी का प्रस्ताव रखा .
उन्होंने प्रस्ताव रखा 3 वचन लिए-
एक तो उनके लिए बाग हो और वही एक थम्भीया महल हो और आप जब भी अंदर पधरोगे आवाज देके पधरोगे 

अम्बावाड़ी में एक थ्म्भा महल बना और वो समय परमरो का स्वर्णिम काल था कोई कमी थी नही उन जगहों के अवसेस भी बयान करते हे कितनी सम्पनता थी महल तैयार होने के कई सालो बाद सुखी जीवन व्यतीत हो रहा था लेकिन राजा को एक बात हमेसा कचोटती की अंदर परवेस के पहले आवाज लगानी इसका क्या मतलब .

इस समय में उनको एक पुत्री जिनका नाम कल्याण कुंवरी (सचियाय), 2 पुत्र हुए सोढा सांखला .   राजा ने सोचा इतने सालो बीते आज बिना आवाज महल में परवेस करते हे , होगा देखा जायेगा,  अंदर परवेस करते ही देखा शेरनी और 3 बचे भी शेर के रूपमे सो रहे हे राजा वापस मुड़े आवाज रुको और वो सब अपने स्वरूप् में गए और आवाज आई अब मेरे जाने का समय गया वचन पुरे हुए उस वक़्त समय ऐसा था वचन वचन होता था आगे कोई अवलेहना नही होती थी .
पुत्रो को आसीस दी सांखला को पूर्व में जाने को कहा तेरा राज होगा और सोढा को पश्चिम में कहा वहाँ तेरा राज्य रहेगा और कल्याण कुंवरी सचियाय जो अवतार था उसे अपनी इच्छा पूछी वो उसी उम्र में सति हो स्वर्ग पधारी दोनों भाइयो को आसीस दी जहा रहो सती के देवल बनाना सदा सक्ति सहाय रहेगी और माँ प्रभावती शिव से विदा ले के स्वर्ग प्रस्थान कर गई
सांखला बड़े होने के बाद ओसिया जिसे उस वक़्त उकेशपुर कहा जाता था वहा अपना राज स्थापित किया उस वक़्त चारो और परमार राज था
सांखला ओसिया के साथ वापस भाई वंट में किराडू आया वहा गए ओसिया को यही किराडू से संचालित करने लगे समजदार विद्वानो ने मना भी किया लेकिन किराडू की सम्पनता से मोह भंग नी छुटा वचन अनुसार उन्हें पूर्व में आगे से आगे प्रगति करनी थी एक दो युद्धों में पराजय हुई और तबसे सांखला कई जगहों चौहानो राठोरो के सामन्त रहे ठिकाणे कई हे पर राज घराना नही कई जागीरे हे बीकानेर जोधपुर जैसलमेर में और सांखला गोत्र के कई लोग कारण वस जेन माली कुम्हार आदि जातियो में मिल गए.

वचन अनुसार सोढा पश्चिम में गए उनको वहा राज करने वाले सुमरा परमार जो उनका भाईपा था खूब स्पोर्ट मिला और रता कोट का राज आबाद किया समय के साथ अमरकोट आबाद किया तबसे उनके वंसज धट(धाट)प्रदेश फिर पारकर उसके बाद पारकर से एक वंसज मूली गुजरात में अपना राज आबाद किया जामनगर के मुख्य सामन्त रहे .
सोढा 12 गांव हे जागीर के हिंदुस्तान पाकिस्तान अलग होने के बाद 
जेसिंधर सुन्धरा बन्धडा खुहडी बेरसियाल करड़ा पोछिना इत्यादि जागीरे इन जागीरों में 24 से 36 गांव हे ये हिंदुस्तान में रह गई 3 जागीरे जोधपुर में हे मोगड़ा भुंका और एक हे मोगड़ा के पास
चाहड़राव
सोढा
चाँचक देव जी
राय देव जी
जभरामजी (जयभर्मजि)
जसोड़ जी
सोमेस्वर जी
धारावरसजी
दुर्जन साल जी
राणो खिंवरो जी

राणा खिंवरा जी की एक शादी राणी रूप कँवर कुंवरी रॉवल दुदोजि देवराजजी के वहाँ हुई थी वहा एक बारात बीकानेर से भी रही थी तो राणा खिंवरा ने मन ही मन सोचा राठोरो की रियासत बड़ी हे दान वगेरह खर्च गाजे बाजे सब में हमारी तोहीन होगी उससे अच्छा किसी को बिन बताये आप घात करने का सोच माँ सचिया को याद कर रात में तलवार उठाई अपने आप पे और देवी प्रकट हुई रुक आवाज आई पूछा क्यों कुल को लजाने वाली हरकत कर् रहा हे बोल क्या तकलीफ हे सारा व्रतांत कहा सुनाया देवी ने वरदान दिया दान जितना सोना हिरे जवाहर ऊंठ घोड़े बारात जाने से लगा के आने तक जितने दे सको उतने देना कोई कम नही होगा जितने ले जाओगे उतने ले आओगे
जैसलमेर की सूरजपोल जहा तोरण वंधा वहा आज भी राणा खिंवरा के घोड़े के पोड़ के निसान हे
दान इतना किया की ढोली तुरी 1550 रयत घोड़े ऊँठ जैसलमेर में सोढा सोढा हो गया दोहा कहा गया
कीरत वाला कहाला दन्त वेरीया डोढा परनिजे सारि पृथ्वी गविजे सोढा 

राणो खिंवरो
राणो अवतार देव जी
राणो थिरोजि
राणो हमीर जी
राणो विसो जी
राणो तेजसी जी
राणो कानो जी
राणो वणवीर जी
राणो गोविन्द जी
राणो नारायण जी
राम
वेरसी
गंगदास
सुन्धरा जागीर
के प्रथम जागीरदार

References and Thx

क्षत्रिय सुरेन्द्र सिंह भाटी तेजमालता जैसलमेर FB_WALL



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