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Sunday, January 22, 2017

VEER YODHA SODHA / वीर योद्धा सोढा

जब एक तीतर पक्षी को बचाने के लिए सैंकड़ो सोढा-परमार राजपूतो ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया


जब एक तीतर पक्षी को बचाने के लिए सोढा-परमार राजपूतो ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया...!!!

एक ऐसी अनोखी घटना जिसमे एक क्षत्राणी अपने वीर पुत्र की चिता के साथ सती हुई।

“शरणे आयो सोपे नहीं राजपुतारी रीत, धड गिरे पर छोड़े नहीं खत्री होय खचित”
अंग पोरस, रसणे अमृत, भुज परचो रजभार
 सोढा वण सूजे नहीं होय नवड दातार...|| १ ||
(सोढा-परमार राजपूतो के हाथ से जो दान मिलता हे, उनकी जीभ से जो अमृत बरसता हे और उनकी भुजाओ में जो ताकत होती हे वैसे और किसी में नहीं होता)

बात हे विक्रम सवंत 1214 की जब सिंध के थरपारकर में सतत सात साल तक बारिश न होने की वजह से अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी जिसकी वजह से वहा के परमार राजा रतनसिंह के बेटे लखधीरसिंह अपनी प्रजा और गोचर के साथ पानी की खोज में सौराष्ट्र के वढवान रियासत में मुली गाव के पास आकर रुके | वहा के उस समय के राजवी विशणदेव वाघेला थे | लखधीरसिंह ने उनसे यहाँ पे रुकने के लिए और अपनी गायो के लिए घास चराने की मांग की, विशणदेव वाघेला अति उदार मन के होने के कारण उन्होंने गायो को चराने के साथ साथ वहा आजू-बाजु की सभी ज़मीन उनको रहेने के लिए दे दी |
 
         धीरे धीरे वहा पर लखधीरसिंहजी और उनके साथ सिंध में से आये लोग वह पे शांति-खुशहाली से रहेने लगे उन्होंने मुली में अपने एक बड़े गढ़ का भी निर्माण कर लिया | परमार राजपुतो की खुशहाली देखकर विशणदेव वाघेला की उपपत्नी जो की सायला के चभाड जाति की थी वो बहुत इर्ष्या करती थी, और मनोमन इनको सबक सिखाने की सोचती रहेती थी | एक बार जब सायला से राणी के भाई वढवान को पधारे तब उन्होंने अपने भाई के सामने परमार राजपूतो के बारे में कई खरी खोटी बाते बताकर उनको परमार राजपुतो को सबक सिखाने के लिए उकसाया |

हालाकि लखधीरसिंहजी और विशलदेव वाघेला के बिच में सबंध बहुत अच्छे होने की वजह से राणी के भाई परमार राजपुतो पर सीधा हमला तो नहीं कर सकते थे, इसलिए वे अपने साथ अपने साथियो और विशलदेव वाघेला के सैन्य से कुछ लोग लेकर कुल ५०० आदमियो को लेकर मुली के पास आकर शिकार करने लगे | उनको जब किसी हिरण या अन्य प्राणी शिकार के लिए नहीं मिला तब उन्होंने तीतर जाती के एक पक्षी को तीर मारा | घायल तीतर जाकर मुली के परमार राजपुतो की हद में गिर पड़ा जिसे देखकर सभी चभाड घोड़े पर चढकर उसके पीछे जाने के बहाने परमार राजपुतो को सबक सिखाने के लिए चल पडे, जिसका दुहा हे की...

जंगल तेतर उडियो, आवयो राजदुवार ||
चभाड सहु घोड़े चड्या बांधी उभा बार || १ ||

       इस तड़पते हुए तीतर को देखर लखधीरसिंहजी की राणी जोमबाई ने उसे हाथ में उठा लिया और कहा “डरना मत शरणागत की रक्षा करना क्षत्रियो का धर्म हे”,

अब तुम मेरे पास आए हो तुम्हे कुछ नहीं होगा | इसको देखकर चभाड लोगो ने कहा की “इसे हमें देदो ये हमारा शिकार हे”, जोमबाई ने जवाब दिया ये घायल तीतर पक्षी हमारे इलाके में आकर गिरा हे इसलिए वो हमारा शरणागत हे, और शरण आने वाले की रक्षा करना क्षत्रियो का धर्म रहा हे और हम वही करेंगे |
 इसको सुनकर शिकारियों ने कहा की हमारा शिकार हमें दे दो या लड़ने को तैयार हो जाओ |

तब जोमबाई ने जवाब दिया की “इ खांडा न खेल अमने न सिखववाना होय”(क्षत्रियो को कभी लड़ना सिखाया नहीं जाता वो मा के पेट के सिख कर आते हे) |
जिसे सुनकर चभाड शिकारी उनके लोगो पर टूट पडे | इसे देखकर जोमबाई ने अपने बेटे “मुंजाजी” से आह्वान किया की...

मुंजाने माता कहे,सुण सोढाना साम |
दल में बल रखो और करो भलेरा काम ||
मुंजा तेतर माहरो, मांगे दुजण सार |
गर्व भर्या गुजरात धणी, आपे नहीं अणवार ||

(मुंजाजी को माता ने कहा की सुण सोढा वंशज, अब भलाई करने का वक़्त आ गया हे, ये तीतर मेरे पास शरणागत आया हे, अब तुजे मेरे दूध का कर्ज़ चुकाना हे और दिखाना हे हमारे जमीन पे आये हुए शरणागत को हम किसी को नहीं सोपते)

जिसे सुनकर मुंजाजी ने जवाब दिया की...

ध्रुव चडे, मेरु डगे, गम मरडे गिरनार |
मरडे कयम मुलिधणी पग पाछा परमार ||

(चाहे ध्रुव सितारा अपनी जगह से हिल जाए, मेरु या गिरनार जैसे पर्वत अपनी जगह से हिल जाए पर अब ये परमार वंश का मुणी का धनि मुंजाजी पीछे नहीं हटेगा)

      इस तरह तीतर को लेकर दोनों पक्षों में घमासान मच गई, धीरे धीरे होकर परमार राजपुतो ने एक एक करके सभी चभाड शिकारियो का वध करने लगे | जिससे उन शिकारियो में हडकंप मच गया | जिसे देखकर वाघेला के सैन्य से कई लोगो ने और राणी के भाई ने मुंजाजी को घेर लिया और उनपे वार करने लगे, जिसके कारण मुंजाजी भी सहीद हो गए | जिसे देखकर बाकि परमार राजपुत शिकारियो पे टूट पडे | देखते ही देखते वहा पे 640 लोगो की लासे बिछ गई जिसमे 140 परमार राजपुत थे और 500 शिकारी सैन्य में थे | इस तरह मुणी का पादर एक रणमैदान में बदल गया |

       इसे देखकर मुंजाजी की माता जोमबाई को सत चढा और उन्होंने अपने बेटे के पीछे सती होने की ठान ली | उनको बहुत सारे लोगो ने मनाया पर उन्होंने ठान लि थी और मुंजाजी की चिता पर सती हो गई |

पडया चभाडह पांचसे, सोढा विशु सात |
एक तेतर ने कारणे अण राखी अखियात || १ ||

  इस तरह एक तीतर पक्षी को बचाने के लिए 140 सोढा राजपुत 500 चभाड लोगो को मारकर रणमैदान में शहीद हो गए |इस बात की गवाही दे रहे स्मारक आज भी सौरास्ट्र के मुणी गाव में 800 साल से खड़े है |

धन्य हे ऐसे क्षत्रियो को जो एक जीव के लिए अपनी जान न्योछावर करने में पल भर के लिए भी नहीं झिझकते...!!!
संदर्भ एवम आभार - 
1--Rajput Vansh Sagar - Sodha/Parmar Vansh page no. 196 se 200
2--Shambhuprasad Harprasad Desai likhit - " Saurastra ka Itihas"
3--Rastriya Shayar Zaverchand Meghani likhit "Saurastra ni Rasdhar"
4-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in

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